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Showing posts from 2008

कश्मीर में उठ रहे आज़ादी की मांग,

कश्मीर भारत में उठ रहे आज़ादी की मांग, या पाकिस्तान परस्त रास्त्र्द्रोही इस्लामिक जेहाद ? कश्मीर जिसे धरती का स्वर्ग और भारत का मुकुट कहा जाता था आज भारत के लिए एक नासूर बन चूका है कारन सिर्फ मुस्लिम जेहाद के तहत कश्मीर को इस्लामिक राज्य बना कर पाकिस्तान के साथ मिलाने की योजना ही है, और आज रस्त्रद्रोही अल्गाव्बदियो ने अपनी आवाज इतनी बुलंद कर ली है की कश्मीर अब भारत के लिए कुछ दिनों का मेहमान ही साबित होने वाला है और यह सब सिर्फ कश्मीर में धारा ३७० लागु कर केंद्र की भूमिका को कमजोर करने और इसके साथ साथ केंद्र सरकार का मुस्लिम प्रेम वोट बैंक की राजनीती और सरकार की नपुंसकता को साबित करने के लिए काफी है यह बात कश्मीर के इतिहास से साबित हो जाता है जब सरदार बल्लव भाई के नेतृतव में भारतीय सेना ने कश्मीर को अपने कब्जे में ले लिया था परन्तु नेहरु ने जनमत संग्रह का फालतू प्रस्ताव लाकर विजयी भारतीय सेना के कदम को रोक दिया जिसका नतीजा पाकिस्तान ने कबाइली और अपनी छद्म सेना से कश्मीर में आक्रमण करवाया और क़ाफ़ी हिस्सा हथिया लिया । और कश्मीर भारत के लिए एक सदा रहने वाली समस्या बन कर रह गयी और पाकिस्ता

अलगावबाद की आवाज

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी नेता मुफ्ती मोहम्मद सईद तथा संसद पर हमले के षड्यंत्र के दोषी एसआर गिलानी का भारत विरोधी रवैया क्या रेखांकित करता है? विडंबना यह है कि इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति के बावजूद तथाकथित सेकुलर खेमा ऐसी अलगाववादी मानसिकता का समर्थन करता है। क्यों? पिछले दिनों जम्मू के रियासी जिले के महोर में एक जनसभा को संबोधित करते हुए मुफ्ती मोहम्मद सईद ने जम्मू-कश्मीर में भारतीय और पाकिस्तानी मुद्राओं का चलन मान्य कर देने की सिफारिश की। इससे पूर्व पिछले साल जम्मू-कश्मीर सरकार के वित्तमंत्री तारीक हमीद कर्रा (पीडीपी नेता) ने प्रदेश के लिए अलग मुद्रा बनाने की बात उठाई थी। सईद का तर्क है कि जिस तरह यूरोपीय संघ के देशों में व्यापार आदि के लिए एक ही मुद्रा का चलन है उसी तरह घाटी में भी पाकिस्तानी मुद्रा का चलन हो ताकि दोनों देशों के बीच व्यापार के साथ आपसी रिश्ते भी बढ़ें। मुफ्ती मोहम्मद सईद के कुतर्को को आगे बढ़ाते हुए पीडीपी के महासचिव निजामुद्दीन भट्ट ने कहा है कि कश्मीर के स्थाई निदान के लिए पीडीपी का जो स्व-शासन का फार्मूला है, दो मुद्राओं के चलन की बात उसी

आतंक और हम

देश में जब कभी कोई आतंकवादी हमला होता है, तो हमले के लिए जिम्मेदार लोगों या उनके संगठनों अथवा हमलावरों को पनाह देने वाले मुल्क या मुल्कों के नाम रेडिमेड तरीके से सामने आ जाते हैं। आतंकवादियों को कायर, पीठ में छुरा घोंपने वाले या बेगुनाहों का हत्यारा कहकर केंद्र और राज्य सरकारें तयशुदा प्रतिक्रिया व्यक्त कर देती हैं। हमारे नेता भी ऊंची आवाज में चीखकर कहते हैं कि आतंकवाद के साथ सख्ती से निपटा जाएगा। घटनास्थल के दौरे के साथ ही सभी बड़ी-बड़ी बातें खत्म हो जाया करती हैं, और यह श्रंखला आतंकवादियों की अगली करतूत होने पर फिर शुरू हो जाती है, यही सिलसिला चलता रहता है। लोगों ने अब यह भी कहना शुरू कर दिया है कि बढ़-चढ़कर किए गए ऐसे दावों में कोई दम नहीं होता। कुछ लोगों ने मुझसे यहां तक कहा कि अखबारों में छपे ऐसे सियासी बयानों को हम पढ़ते तक नहीं। 25 अगस्त को हैदराबाद के एक एम्यूजमेंट पार्क और फिर एक मशहूर चाट की दुकान पर कुछ ही मिनट के अंतर से एक के बाद एक हुए दो विस्फोटों में पचास से अधिक लोग मारे गए और 75 घायल हो गए । राज्य व केंद्र सरकार ने इस हादसे के लिए भी, हर बार की तरह सरहद पार से आए आतंक

दारुल उलूम का मुस्लिम सम्मेलन की सच्चाई

दारुल उलूम का मुस्लिम सम्मेलन खासी चर्चा में है। बेशक पहली दफा किसी बड़े मुस्लिम सम्मेलन में आतंकवाद की निंदा की गई, लेकिन आतंकवाद के आरोप में जेल में बंद 'असंख्य निर्दोष मुस्लिमों पर हो रहे असहनीय अत्याचारों' पर गहरी चिंता भी जताई गई। आल इंडिया एंटी टेररिज्म कांफ्रेंस की दो पृष्ठीय उद्घोषणा में आतंकवाद विरोधी सरकारी कार्रवाइयों को भेदभाव मूलक कहा गया। इसके अनुसार निष्पक्षता, नैतिकता और आध्यात्मिक मूल्यों वाले भारत में वर्तमान हालात बहुत खराब है। सम्मेलन ने आरोप लगाया कि इस वक्त सभी मुसलमान, खासतौर से मदरसा प्रोग्राम से जुड़े लोग दहशत में जी रहे है कि वे किसी भी वक्त गिरफ्तार हो सकते है। सम्मेलन में सरकारी अधिकारियों पर असंख्य निर्दोष मुस्लिमों को जेल में डालने, यातनाएं देने और मदरसों से जुड़े लोगों को शक की निगाह से देखने का आरोप भी जड़ा गया। सम्मेलन ने भारत की विदेश नीति और आंतरिक नीति पर पश्चिम की इस्लाम विरोधी ताकतों का प्रभाव बताया। देश दुनिया के मुसलमानों से हमेशा की तरह एकजुट रहने की अपील की गई। ऐलान हुआ कि सभी सूबों में भी ऐसे ही जलसे होंगे। सरकार के कथित मुस्लिम विरोधी नज

पाकिस्तान राष्ट्र नहीं है।

पाकिस्तान राष्ट्र नहीं है। यह कट्टरपंथी जेहादी और विश्व आतंकवाद की प्रापर्टी है। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी का मालिकाना मसला वसीयत से सुलट गया। 'प्रापर्टी पाकिस्तान' को लेकर मुसलसल जंग है। यहां कोई संप्रभु संवैधानिक सत्ता भी नहीं है। सिर्फ 60 साल की उम्र के इस मुल्क ने 4 संविधान बनाए। 32 साल तक सेना का राज रहा। इसके अलावा भी 10 साल तक सेना ने ही परोक्ष हुकूमत की, सिर्फ 18 साल ही अप्रत्यक्ष लोकतंत्र रहा। अभी भी सेना का ही राज है। बेनजीर भुट्टो की हत्या कोई अस्वाभाविक घटना नहीं है। पांच माह पहले ही लाल मस्जिद में कार्रवाई हुई थी। इसके पहले न्यायपालिका का सरेआम कत्ल हुआ। पाकिस्तान जेहादी आतंकवाद की विश्वविख्यात यूनिवर्सिटी है। {येही है इसलाम और इस्लामी सल्तनत } रक्त पिपासु जेहादी आतंकियों पर आईएसआई और सेना का कवच है। आईएसआई और जेहादी आतंकियों के साथ कट्टरपंथी मौलानाओं की दुआएं है। भारत सबका दुश्मन नंबर एक है, लेकिन भारतीय हुक्मरान इससे बेखबर है। पाकिस्तान के जन्म का आधार मजहबी अलगाववाद था। राष्ट्र मजहब से नहीं बनते। राष्ट्र निर्माण का आधार संस्कृति होती है। मजहबी अलगाववादियों ने अ

मुस्लिम जेहाद और भारतीय राजनीती

भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नारायणन के ताजा वक्तव्य ने सबको चौंकाया है। नारायणन ने बीते सप्ताह कहा कि अलकायदा का एक दल भारत आया और कुछ समय रुका, लेकिन उसका मंतव्य पूरा नहीं हुआ। वह जिस योजना पर काम कर रहा था वह असफल हो गई। उन्होंने आगे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सुर में सुर मिलाया कि भारत का कोई मुसलमान अलकायदा का सदस्य नहीं है। इस बयान से कई महत्वपूर्ण सवाल उठे है। नारायण सच बोलने के लिए प्रसिद्ध थे, लेकिन इस बार उनकी बात में विचित्र विरोधाभास है। अलकायदा की टीम यहां रुकी, लेकिन यहां उसके किसी मुसलमान से संबंध भी नहीं हैं। संबंध नहीं तो रुके कैसे? आए कैसे? क्या किसी हिंदू, सिख या ईसाई परिवार ने उसकी आवभगत की? मसला गंभीर है। प्रधानमंत्री को अलकायदा भ्रमण के प्रश्न पर स्पष्टीकरण देना चाहिए। अलकायदा विश्व कुख्यात आतंकी संगठन है। इसी तरह के ढेर सारे संगठन जेहाद के नाम पर युद्धरत हैं। जेहादी आतंक का भूमंडलीकरण हो चुका है। सारी दुनिया को कट्टरपंथी इस्लामी आस्था के लिए मजबूर करने वाले जेहादी युद्ध विश्वव्यापी है और इससे संपूर्ण मानवता आतंकित है। दक्षिण पूर्व में आस्ट्रेलिया

गांधी हत्या : उचित या अनुचित ?

मेरी दृष्टि में महात्मा गांधी जी जैसे महान पुरुष की सैद्धान्तिक मौत तो भारत के विभाजन के समय ही हो चुकी थी। अतः शारीरिक रूप से गोली मार कर हुतात्मा नाथूराम गोडसे ने उन्हें अमरता का पर्याय ही बनाया। महापुरुषों के जीवन में उनके सिद्धान्तों और आदर्शों की मौत ही वास्तव में मौत होती है। 14 अगस्त, 1946 में मुस्लिम लीग के गुण्डों को आह्वान और कलकत्ता में 6,000 हिन्दुओं का कल्तेआम पर गांधी की चुप्पी। जब लाखों माताओं, बहनों, के शील हरण तथा रक्तपात और विश्व की सबसे बड़ी त्रासदी द्विराष्ट्रवाद के सिद्धान्त के आधार पर पाकिस्तान का निर्माण हुआ, उस समय महात्मा गांधी के लिए हिन्दुस्तान की जनता में जबर्दस्त आक्रोश फैल चुका था। रही-सही कसर पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये देने के लिए महात्मा गांधी के अनशन ने पूरी कर दी। वास्तव में सारा देश महात्मा गांधी का उस समय घोर विरोध कर रहा था और भगवान से उनकी मृत्यु की आराधना कर रहा था। लोगों की जुबान पर बूढ़ा सठिया गया है-भगवान् इसको जल्दी उठा लें, जैसे शब्द थे। कई सभाओं में तो उन पर अण्डे, प्याज और टमाटर आदि भी फेंके गये तथा उनका तिरस्कार एवं बहिष्कार लोगों ने अपनी

कम्युनिस्टों के ऐतिहासिक अपराध

दुनिया भर के प्रमुख विचारकों ने भारतीय जीवन-दर्शन एवं जीवन-मूल्य, धर्म, साहित्य, संस्कृति एवं आध्यात्मिकता को मनुष्य के उत्कर्ष के लिए सर्वोत्कृष्ट बताया है, लेकिन इसे भारत का दुर्भाग्य कहेंगे कि यहां की माटी पर मुट्ठी भर लोग ऐसे हैं, जो पाश्चात्य विचारधारा का अनुगामी बनते हुए यहां की परंपरा और प्रतीकों का जमकर माखौल उड़ाने में अपने को धन्य समझते है। इस विचारधारा के अनुयायी 'कम्युनिस्ट' कहलाते है। विदेशी चंदे पर पलने वाले और कांग्रेस की जूठन पर अपनी विचारधारा को पोषित करने वाले 'कम्युनिस्टों' की कारस्तानी भारत के लिए चिंता का विषय है। हमारे राष्ट्रीय नायकों ने बहुत पहले कम्युनिस्टों की विचारधारा के प्रति चिंता प्रकट की थी और देशवासियों को सावधान किया था। आज उनकी बात सच साबित होती दिखाई दे रही है। सच में, माक्र्सवाद की सड़ांध से भारत प्रदूषित हो रहा है। आइए, इसे सदा के लिए भारत की माटी में दफन कर दें। कम्युनिस्टों के ऐतिहासिक अपराधों की लम्बी दास्तां है- • सोवियत संघ और चीन को अपना पितृभूमि और पुण्यभूमि मानने की मानसिकता उन्हें कभी भारत को अपना न बना सकी। • कम्युनिस्टों ने

बंगलादेशी घुसपैठ कितना खतरनाक ?

भारत की स्वतंत्रता के उपरान्त से ही जिस प्रकार विभिन्न देशों से लोग यहां आये उनमें से अनेक तो शरणार्थी के रूप में थे और अनेक चोरी छिपे घुसपैठिये थे। इससे भारत में जहां जनसंख्या में असंतुलन उभरा वहीं देश में अनेक प्रकार की समस्याएं खडी हो गईं। गत दस वर्षों में बांग्लादेश से लगभग 5.8 करोड की एक बडी आबादी ने भारत में अवैध रूप से घुसपैठ कर ली है जिससे देश में अनेक सीमावर्ती जिले इन घुसपैठियों के लगभग कब्जे में ही आ गये है। परन्तु सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि देश के तथाकथित गैर साम्प्रदायिक राजनीतिक नेता इन अवैध घुसपैठियों की बांग्लादेश में वापसी के लिए कोई पहल नहीं कर रहे हैं तथा जो राजनेता इनको वापिस भेजने की मांग करते हैं उनको साम्प्रदायिक कह कर गाली दी जाती है ।अब भारत की एकता व अखण्डता भी खतरे में पडती जा रही है । बढ़ती घुसपैठ व बढती जनसंख्या के असंतुलन से देश की आंतरिक सुरक्षा भी खतरे में पड गई है। देश को बाह्य आक्रमण से बचाने के लिए देश की सम्पूर्ण जनता जाति, बिरादरी, मजहब व पंथ को छोड कर एकजुट हो जाती है लेकिन आंतरिक आक्रमण-घुसपैठ होने से आंतरिक असुरक्षा उत्पन्न हो जाती है जिसको सामा

हिंदुत्व

वीर सावरकर ने हिन्दुत्व और हिन्दूशब्दों की एक परिभाषा दी थी जो हिन्दुत्ववादियों के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है उन्होंने कहा कि हिन्दू वो व्यक्ति है जो भारत को अपनी पितृभूमि और अपनी पुण्यभूमि दोनो मानता है । हिन्दुत्व शब्द फ़ारसी शब्द हिन्दू और संस्कृत प्रत्यय -त्व से बना है । हिन्दुत्ववादी कहते हैं कि हिन्दू शब्द के साथ जितनी भी भावनाएं और पद्धतियाँ, ऐतिहासिक तथ्य, सामाजिक आचार-विचार तथा वैज्ञानिक व आध्यात्मिक अन्वेषण जुड़े हैं, वे सभी हिन्दुत्व में समाहित हैं।हिन्दुत्व शब्द केवल मात्र हिन्दू जाति के कोरे धार्मिक और आध्यात्मिक इतिहास को ही अभिव्यक्त नहीं करता। हिन्दू जाति के लोग विभिन्न मत मतान्तरों का अनुसरण करते हैं। इन मत मतान्तरों व पंथों को सामूहिक रूप से हिन्दूमत अथवा हिन्दूवाद नाम दिया जा सकता है । आज भ्रान्तिवश हिन्दुत्व व हिन्दूवाद को एक दूसरे के पर्यायवाची शब्दों के रूप में प्रयोग किया जा रहा है। यह चेष्टा हिन्दुत्व शब्द का बहुत ही संकीर्ण प्रयोग है । हिन्दुत्ववादियों के अनुसार हिन्दुत्व किसी भी धर्म या उपासना पद्धति के ख़िलाफ़ नहीं है । वो तो भारत में सुदृढ़ राष्ट्रवाद और

ऐतिहासिक परिपेक्ष्य में जिहाद

द्वारा डैनियल पाइप्सन्यूयार्क सन31 मई, 2005 राइस विश्वविद्यालय के डेविड कुक ने “अन्डर-स्टेंडिंग जिहाद” नाम से एक बहुत अच्छी और बोधगम्य पुस्तक लिखी है .युनिवर्सिटी औफ कैलीफोर्निया प्रेस द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का विमोचन अभी शीघ्र ही हुआ है ...इस पुस्तक में डेविड कुक ने 11 सितम्बर के पश्चात जिहाद पर आरंभ हुई निचले स्तर की बहस के स्वरुप को निरस्त किया है कि क्या यह एक आक्रामक युद्द पद्धति है या फिर व्यक्ति के नैतिक विकास का प्रकार है... कुरान मुसलमानों को स्वर्ग के बदले अपनी जान देने को आमंत्रित करता है ..हदीथ , जो कि मोहम्मद के क्रियाकलापों और व्यक्तिगत बयानों का लेखा जोखा है ,कुरान के सिद्दांतो की और अधिक व्याख्या करता है .इसमें संधियों, धन का वितरण , युद्द में प्राप्त सामग्री य़ा पुरस्कार , बंदियों, विभिन्न नीतियों का उल्लेख है ..मुसलिम विधिशास्त्र ने कालांतर में इन व्यावहारिक विषयों को सूत्रबद्ध कर इसे एक कानून का स्वरुप दे दिया .... पैगंबर ने अपने शासनकाल के दौरान औसतन प्रतिवर्ष नौ सैन्य अभियानों में हिस्सा लिया ...अर्थात प्रत्येक पाँच या छ सप्ताह में एक सैन्य अभियान , इस प्रकार अत्

मुस्लिम वोटों की लालच

पिछले दिनों जब असम में उग्रवादी संगठनों ने हिन्दी भाषी लोगों को निशाना बनाया तो एक बार फिर एक साथ अनेक सवाल उठकर खड़े हो गये. पहला, इस बर्बर नरसंहार के लिये दोषी किसे ठहराया जाना चाहिये. उग्रवादी संगठन उल्फा को पाकिस्तानी खुफिया संगठन आई.एस.आई को या फिर स्वयं असम सरकार की लापरवाही को. वैसे तो असम के मुख्यमन्त्री ने तत्काल इस नरसंहार की जिम्मेदारी आई.एस.आई पर डाल दी परन्तु क्या इससे मुख्यमन्त्री तरूण गोगोई का उत्तरदायित्व समाप्त हो जाता है. आखिर पिछले चुनावों में उल्फा की सहायता लेकर और फिर बोडो अलगाववादी संगठन की पूर्ववर्ती शाखा के साथ सरकार बनाकर सेना के हाथ किसने बाँधे थे. कांग्रेस सरकार ने ऐसे बोडो सदस्यों को अपना भागीदार बनाया जिनके अभी भी भूमिगत उग्रवादियों से सम्बन्ध हैं. उल्फा के सहयोग की कीमत चुकाते हुये सरकार ने उल्फा के साथ युद्ध विराम की घोषणा कर दी और इस दौरान इस संगठन को स्वयं को सशक्त करने का अवसर प्राप्त हो गया. तत्काल लापरवाही के साथ-साथ कांग्रेस सरकार की बांग्लादेश घुसपैठ के सम्बन्ध में राष्ट्रीय सुरक्षा से अधिक मुस्लिम वोट बैंक को खुश करने की नीति ने भी इस समस्या

वामपंथ की दरकती इमारत

जब कोई इमारत दरकने लगती है तो उसकी दरारों में से कीड़े-मकोड़े निकलने शुरू हो जाते हैं। पश्चिम बंगाल में ऐसा ही कुछ नजर आ रहा है। गत माह कोलकाता की गलियों में गुंडागर्दी के शर्मनाक प्रदर्शन की जो तस्वीर दुनिया के सामने आई है उसमें यह साफ-साफ नजर आया कि माकपा के हाथ से एक ऐसे राज्य का नियंत्रण निकल रहा है जिस पर उसने अनवरत 30 सालों तक शासन किया है। कार्यकर्ताओं द्वारा नंदीग्राम पर पुन: कब्जा जमाना यदि ग्रामीण समुदाय के कोने-कोने में पार्टी के प्रभुत्व को स्थापित करने का एक हताशा भरा प्रयास था तो राज्य सरकार द्वारा तसलीमा नसरीन को कोलकाता से बाहर निकालना उन प्रतिगामी शक्तियों के फिर से हावी हो जाने का प्रमाण था जिनको माकपा व्यवस्थित तरीके से पोषित करती रही है। ऐसा आभास होता है कि राजनीतिक अस्तित्व को बचाए रखने के लिए माकपा पूरे घटनाक्रम से संबद्ध नुकसान अर्थात बंगाली भद्रलोक से पार्टी के अलगाव को भी स्वीकार करने को तैयार है। पार्टी की बुनियादी मान्यताओं पर समग्र दृष्टिपात किए बिना ही घड़ी की सुई को पीछे खींचने की कोशिश के संबंध में किसी मत पर पहुंचना अभी जल्दबाजी होगी। सोवियत संघ में मिखाइल

सीमा पार सुलगती आग

पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में है। पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या अंतरराष्ट्रीय खबर थी और हत्या को हादसा बताने वाली सरकारी सफाई भी। बेनजीर की वसीयत के मुताबिक पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी नाबालिग पुत्र के नाम हो गई। यह भी बड़ी खबर थी। गोया पार्टी भी एक प्रापर्टी थी। पाकिस्तान भी राष्ट्र नहीं है। यह कट्टरपंथी आक्रामक समूहों और सेना की प्रापर्टी है। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी का मालिकाना मसला वसीयत से सुलट गया। 'प्रापर्टी पाकिस्तान' को लेकर मुसलसल जंग है। यहां कोई संप्रभु संवैधानिक सत्ता भी नहीं है। सिर्फ 60 साल की उम्र के इस मुल्क ने 4 संविधान बनाए। 32 साल तक सेना का राज रहा। इसके अलावा भी 10 साल तक सेना ने ही परोक्ष हुकूमत की, सिर्फ 18 साल ही अप्रत्यक्ष लोकतंत्र रहा। अभी भी सेना का ही राज है। बेनजीर भुट्टो की हत्या कोई अस्वाभाविक घटना नहीं है। पांच माह पहले ही लाल मस्जिद में कार्रवाई हुई थी। इसके पहले न्यायपालिका का सरेआम कत्ल हुआ। पाकिस्तान जेहादी आतंकवाद की विश्वविख्यात यूनिवर्सिटी है। रक्त पिपासु जेहादी आतंकियों पर आईएसआई और सेना का कवच है। आईएसआई और जेहादी आतंकिय