भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नारायणन के ताजा वक्तव्य ने सबको चौंकाया है। नारायणन ने बीते सप्ताह कहा कि अलकायदा का एक दल भारत आया और कुछ समय रुका, लेकिन उसका मंतव्य पूरा नहीं हुआ। वह जिस योजना पर काम कर रहा था वह असफल हो गई। उन्होंने आगे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सुर में सुर मिलाया कि भारत का कोई मुसलमान अलकायदा का सदस्य नहीं है। इस बयान से कई महत्वपूर्ण सवाल उठे है। नारायण सच बोलने के लिए प्रसिद्ध थे, लेकिन इस बार उनकी बात में विचित्र विरोधाभास है। अलकायदा की टीम यहां रुकी, लेकिन यहां उसके किसी मुसलमान से संबंध भी नहीं हैं। संबंध नहीं तो रुके कैसे? आए कैसे? क्या किसी हिंदू, सिख या ईसाई परिवार ने उसकी आवभगत की? मसला गंभीर है। प्रधानमंत्री को अलकायदा भ्रमण के प्रश्न पर स्पष्टीकरण देना चाहिए।
अलकायदा विश्व कुख्यात आतंकी संगठन है। इसी तरह के ढेर सारे संगठन जेहाद के नाम पर युद्धरत हैं। जेहादी आतंक का भूमंडलीकरण हो चुका है। सारी दुनिया को कट्टरपंथी इस्लामी आस्था के लिए मजबूर करने वाले जेहादी युद्ध विश्वव्यापी है और इससे संपूर्ण मानवता आतंकित है। दक्षिण पूर्व में आस्ट्रेलिया इससे पीड़ित है। फिलीपींस, थाईलैंड इसके प्रभाव क्षेत्र हैं। रूस, मिस्त्र, युगोस्लाविया, स्पेन पीड़ित है। अमेरिका खुलकर मैदान में है। पिछले वर्ष अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश ने जेहादी आतंकवाद को 'इस्लामी फासीवाद' कहा था। अमेरिका ने अफगानिस्तान पर की गई सैन्य कार्रवाई को 21वीं सदीं का प्रथम विश्व युद्ध बताया था। अमेरिकी वक्तव्य के अनुसार 'इस्लामी फासीवाद' सारी दुनिया का शत्रु है। इससे सभी राष्ट्रों का संघर्ष है। अमेरिका ने हाल ही में पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद के विरुद्ध की गई ठोस कार्रवाई को आर्थिक सहायता की नई शर्त बताया है। पाकिस्तान आतंकवाद का प्रशिक्षण केंद्र है। अमेरिका पाकिस्तानी 'इस्लामी फासीवाद' से परिचित था। इसके बावजूद उसने रूस के विरुद्ध तालिबान को सहायता दी। वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले से अमेरिका की आंखें खुलीं। पाकिस्तान और उसके हुक्मरान जम्मू-कश्मीर के आतंकवादियों को स्वाधीनता संग्राम सेनानी बता रहे थे, तब लाल मस्जिद सहित पाकिस्तान के कोने-कोने में बम फोड़ रहे आतंकी भी स्वाधीनता सेनानी ही होने चाहिए? जेहादियों ने पहले अपने संरक्षक अमेरिका पर हल्ला बोला और अब अपने पोषक और प्रशिक्षक पाकिस्तान पर। भारत बहुत लंबे अर्से से जेहादी आतंक का निशाना है। पिछले कुछ वर्षों में अयोध्या, वाराणसी के संकटमोचन मंदिर, अक्षरधाम, रघुनाथ मंदिर और संसद पर जेहादी हमला हो चुका है। मुंबई में बीते बरस ही चलती ट्रेनों में 187 निर्दोष मारे गए। लगभग एक हजार लोग घायल हुए। दिल्ली की दीपावली रक्तरंजित हुई। जम्मू-कश्मीर में धारावाहिक हत्याएं जारी है। उत्तर प्रदेश की राजधानी और पड़ोसी जिले उन्नाव में आरडीएक्स मिला। राज्य विधानसभा में सरकार ने 34 जिलों को आतंकी गतिविधियों से युक्त बताया। पूरा भारत आतंकवाद की गिरफ्त में है। कुछ समय पहले अमेरिकी खुफिया विभाग ने दिल्ली और मुंबई को अलकायदा के निशाने पर बताया था, लेकिन भारत के सत्ताधीश मजे में हैं। प्रधानमंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की सफाई भी सांप्रदायिक है। वे गर्वपूर्वक यह भी कह सकते थे कि भारत का कोई भी नागरिक अलकायदा का सदस्य नहीं है, लेकिन उन्होंने सिर्फ मुसलमानों पर सफाई दी। सत्ता के शिखर से आए ऐसे बयानों का आखिरकार मतलब क्या है? आतंकवादी मानवता का शत्रु होता है। उसका कोई मजहब नहीं होता, लेकिन आतंकवाद से लड़ने के लिए अधिनियमित कानून पोटा हटाने का कारण मजहबी था। भारत इतिहास से सबक नहीं लेता इसीलिए अदने से पड़ोसी मुल्क द्वारा प्रायोजित आतंकवाद के सामने भी पिट जाता है। भारत के सत्ताधीश विश्वव्यापी जेहादी आतंकवाद के फलसफे पर गौर नहीं करते। वे उनकी हिंसक विचारधारा, युद्ध क्षमता और रणनीति को भी नजरअंदाज करते हैं। वे राष्ट्रीय सुरक्षा और एकता पर विचार नहीं करते। वे जेहादी आतंकवाद के बजाए मुस्लिम वोट की दहशत में थर-थर कांपने के आदी हैं। दुनिया दो भागों में विभाजित है। एक तरफ जेहादी आतंकी हैं और दूसरी तरफ समूची मानवता। जेहादी आतंकवाद तीसरे विश्वयुद्ध की शक्ल ले चुका है। तीसरा विश्वयुद्ध अनोखा है। इस युद्ध का ऐलान राष्ट्र नहींकरते। इसमें राष्ट्र और राज्यों की सेनाएं पक्ष प्रतिपक्ष नहीं हैं। दुनिया की समूची सैन्य शक्ति, राष्ट्र राज्य व्यवस्थाएं, अत्याधुनिक परमाणु हथियार और मिसाइलें भी जेहादी आतंकवाद के सामने मिमिया रही हैं।
जेहाद एक बेबाक युद्ध विचारधारा है। निर्दोषों की हत्या, हिंसा, लूटपाट इसमें अपराध नहीं साधन होते हैं। यह दुनिया को दो हिस्सों में बांटता है। जमात-ए-इस्लामी के संस्थापक सैय्यद अबुल मौदूही के मुताबिक कुरान सारी दुनिया में सिर्फ दो पार्टियां देखता है। जमीयत ए उलेमा हिंद जैसे संगठनों के अनुसार जेहाद का मकसद इस्लामी हुकूमत और बाकी दीगर धर्मों पर इस्लाम का गलबा कायम करना है। बोस्निया, कोसोवो, काकेशश, चेचन्या, इंडोनेशिया, फिलीपीन्स, उत्तरी अफ्रीका और इजरायल जैसे देशों में मुसलमानों और गैरमुसलमानों के बीच ऐसे संघर्षों की अनेक गाथाएं हैं। भारत मोहम्मद बिनकासिम के समय से लेकर गौरी, गजनी और औरंगजेब जैसे खलनायकों का निशाना बना, लेकिन नए किस्म के जेहादी युद्ध में दुश्मन की शिनाख्त आसान नहीं होती। यह युद्ध सीमा पर नहीं लड़ा जाता। सेना और पुलिस कानून के बंधन में रह कर सुरक्षा करते हैं जबकि आतंकी दनदनाते हुए किसी को भी मार डालते हैं। वे आत्मघाती मानव बम बना रहे हैं। उन्हें मारे जाने पर जन्नत की गारंटी है। आश्चर्य है कि भारत इस युद्ध से आंखें चुरा रहा है।
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