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Showing posts from February, 2008

मुस्लिम जेहाद और भारतीय राजनीती

भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नारायणन के ताजा वक्तव्य ने सबको चौंकाया है। नारायणन ने बीते सप्ताह कहा कि अलकायदा का एक दल भारत आया और कुछ समय रुका, लेकिन उसका मंतव्य पूरा नहीं हुआ। वह जिस योजना पर काम कर रहा था वह असफल हो गई। उन्होंने आगे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सुर में सुर मिलाया कि भारत का कोई मुसलमान अलकायदा का सदस्य नहीं है। इस बयान से कई महत्वपूर्ण सवाल उठे है। नारायण सच बोलने के लिए प्रसिद्ध थे, लेकिन इस बार उनकी बात में विचित्र विरोधाभास है। अलकायदा की टीम यहां रुकी, लेकिन यहां उसके किसी मुसलमान से संबंध भी नहीं हैं। संबंध नहीं तो रुके कैसे? आए कैसे? क्या किसी हिंदू, सिख या ईसाई परिवार ने उसकी आवभगत की? मसला गंभीर है। प्रधानमंत्री को अलकायदा भ्रमण के प्रश्न पर स्पष्टीकरण देना चाहिए। अलकायदा विश्व कुख्यात आतंकी संगठन है। इसी तरह के ढेर सारे संगठन जेहाद के नाम पर युद्धरत हैं। जेहादी आतंक का भूमंडलीकरण हो चुका है। सारी दुनिया को कट्टरपंथी इस्लामी आस्था के लिए मजबूर करने वाले जेहादी युद्ध विश्वव्यापी है और इससे संपूर्ण मानवता आतंकित है। दक्षिण पूर्व में आस्ट्रेलिया

गांधी हत्या : उचित या अनुचित ?

मेरी दृष्टि में महात्मा गांधी जी जैसे महान पुरुष की सैद्धान्तिक मौत तो भारत के विभाजन के समय ही हो चुकी थी। अतः शारीरिक रूप से गोली मार कर हुतात्मा नाथूराम गोडसे ने उन्हें अमरता का पर्याय ही बनाया। महापुरुषों के जीवन में उनके सिद्धान्तों और आदर्शों की मौत ही वास्तव में मौत होती है। 14 अगस्त, 1946 में मुस्लिम लीग के गुण्डों को आह्वान और कलकत्ता में 6,000 हिन्दुओं का कल्तेआम पर गांधी की चुप्पी। जब लाखों माताओं, बहनों, के शील हरण तथा रक्तपात और विश्व की सबसे बड़ी त्रासदी द्विराष्ट्रवाद के सिद्धान्त के आधार पर पाकिस्तान का निर्माण हुआ, उस समय महात्मा गांधी के लिए हिन्दुस्तान की जनता में जबर्दस्त आक्रोश फैल चुका था। रही-सही कसर पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये देने के लिए महात्मा गांधी के अनशन ने पूरी कर दी। वास्तव में सारा देश महात्मा गांधी का उस समय घोर विरोध कर रहा था और भगवान से उनकी मृत्यु की आराधना कर रहा था। लोगों की जुबान पर बूढ़ा सठिया गया है-भगवान् इसको जल्दी उठा लें, जैसे शब्द थे। कई सभाओं में तो उन पर अण्डे, प्याज और टमाटर आदि भी फेंके गये तथा उनका तिरस्कार एवं बहिष्कार लोगों ने अपनी

कम्युनिस्टों के ऐतिहासिक अपराध

दुनिया भर के प्रमुख विचारकों ने भारतीय जीवन-दर्शन एवं जीवन-मूल्य, धर्म, साहित्य, संस्कृति एवं आध्यात्मिकता को मनुष्य के उत्कर्ष के लिए सर्वोत्कृष्ट बताया है, लेकिन इसे भारत का दुर्भाग्य कहेंगे कि यहां की माटी पर मुट्ठी भर लोग ऐसे हैं, जो पाश्चात्य विचारधारा का अनुगामी बनते हुए यहां की परंपरा और प्रतीकों का जमकर माखौल उड़ाने में अपने को धन्य समझते है। इस विचारधारा के अनुयायी 'कम्युनिस्ट' कहलाते है। विदेशी चंदे पर पलने वाले और कांग्रेस की जूठन पर अपनी विचारधारा को पोषित करने वाले 'कम्युनिस्टों' की कारस्तानी भारत के लिए चिंता का विषय है। हमारे राष्ट्रीय नायकों ने बहुत पहले कम्युनिस्टों की विचारधारा के प्रति चिंता प्रकट की थी और देशवासियों को सावधान किया था। आज उनकी बात सच साबित होती दिखाई दे रही है। सच में, माक्र्सवाद की सड़ांध से भारत प्रदूषित हो रहा है। आइए, इसे सदा के लिए भारत की माटी में दफन कर दें। कम्युनिस्टों के ऐतिहासिक अपराधों की लम्बी दास्तां है- • सोवियत संघ और चीन को अपना पितृभूमि और पुण्यभूमि मानने की मानसिकता उन्हें कभी भारत को अपना न बना सकी। • कम्युनिस्टों ने