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आतंक के शिक्षा केन्द्र

अभी इस वर्ष के आरम्भ तक भारत में चल रहे इस्लामी आतंकवाद को उसके वैश्विक और विचारधारागत स्वभाव से जोड़कर देखने पर देश के नेताओं, लेखकों, समीक्षकों और रणनीतिकारों को गहरी आपत्ति थी. यहाँ तक कि भारत के मुसलमानों को इस आतंकी नेटवर्क या विचार से परे सिद्ध करने के लिये तर्क दिये जाते थे कि भारत का कोई भी मुसलमान अफगानिस्तान और ईराक में तालिबान या अल-कायदा की ओर से लड़ने नहीं गया. परन्तु सम्भवत: ये समीक्षक भारत में स्थित उन इस्लामी संस्थानों को लेकर चिन्तित नहीं थे जो इस धरती से पूरे विश्व के मुसलमानों को कट्टरता और आतंक की शिक्षा दे रहे हैं. जी हाँ ये चौंकने का विषय नहीं है भारत की धरती पर स्थित दो इस्लामी संस्थान समस्त विश्व में विध्वंस की मानसिकता रखने वाले आतंकियों के प्रेरणास्रोत हैं. लन्दन में अनेक विमानों को उड़ाने के षड़यन्त्र की पूछताछ में ब्रिटेन की पुलिस को पता चला है कि इस षड़यन्त्र में सम्मिलित कुल 23 लोगों में अनेक तबलीगी जमात के कट्टर समर्थक हैं. इस संगठन का ब्रिटेन की अधिकांश मस्जिदों पर नियन्त्रण है. तबलीगी जमात की स्थापना 1927 में भारत में मोहम्मद इलयास नामक मुस्लिम द्वारा की गयी थी जिसका मुख्यालय दिल्ली के निजामुद्दीन क्षेत्र में है. इस संगठन की स्थापना इस्लाम में धर्मान्तरित हिन्दुओं को कट्टर मुसलमान बनाने के लिये गयी थी. इस संगठन के अनुयायियों को दाढ़ी बढ़ानी पड़ती है, पाँचो वक्त नमाज पढ़नी होती है तथा ये बड़ा कुर्ता और छोटा पायजामा पहनते हैं. लन्दन षड़यन्त्र के एक संदिग्ध असाद सरवर के भाई अमजद ने ब्रिटेन के एक टी.वी चैनल को बताया कि उसके भाई ने विश्वविद्यालय की पढ़ाई छोड़ दी और तबलीगी जमात की साप्ताहिक बैठकों में जाने लगा. केवल असद ही नहीं अनेक संदिग्धों के रिश्तेदारों ने इनके तबलीगी जमात से जुड़ाव की पुष्टि की है. यह पहला अवसर नहीं है जब आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने वालों का जमात से लगाव और सम्पर्क रहा है. इससे पूर्व जुलाई 2005 में हुये लन्दन विस्फोटों के दो फिदाईन सिद्दीक अहमद खान और शहजाद तनवीर ने तबलीग के नियन्त्रण वाली मस्जिद का दौरा किया था. इसके साथ ही अल-कायदा के अनेक सदस्यों ने अमेरिका के समक्ष स्वीकार किया कि उन्होंने पाकिस्तान में तबलीग के शिविरों में भाग लिया था. इसके अतिरिक्त गोधरा में अयोध्या से वापस लौट रहे कारसेवकों को साबरमती में जीवित जलाने की घटना में भी जाँच में तबलीगी जमात का नाम आया था. इसके अतिरिक्त भारत का दूसरा इस्लामी संस्थान जो आतंक का शिक्षा केन्द्र है वह है दारूल उलूम देवबन्द. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से 70 कि.मी की दूरी पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में देवबन्द नामक स्थान पर स्थित यह मदरसा विश्व के बड़े इस्लामी आतंकवादियों की विचारधारा का पोषक रहा है. तालिबान अमीर मुल्ला उमर, जैश-ए-मोहम्मद का संस्थापक मसूद अजहर, पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ इसी देवबन्दी विचारधारा के अनुयायी हैं. जिहाद का अनुपालन करने वाली दो शाखाओं बरेलवी और देवबन्दी में मूलभूत अन्तर जिहाद के प्रकार को लेकर है. बरेलवी शाखा धीरे चलने में विश्वास करते हैं जबकि देवबन्दी ओसामा के जिहाद में भरोसा रखते हैं. समस्त विश्व में आज जिहाद के नाम पर आतंकवाद फैलाने वाले सभी संगठनों में अधिकांश की प्रेरणास्रोत देवबन्दी विचारधारा है. इस स्थिति को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि 21वीं शताब्दी में इस्लामी आतंकवाद का प्रेरणा स्थल भारत हो जायेगा जैसा कभी 20वीं शताब्दी में सउदी अरब और उसका वहाबी चिन्तन था. अच्छा होता हमारे देश के रणनीतिकार इस वास्तविकता को समझकर भारत को आतंकी शिक्षाकेन्द्र बनने से रोकते न कि इस मुगालते में जीते कि भारत किसी भी प्रकार से वैश्विक जिहाद का अंग नहीं है.

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